सही समय पर सेवानिवृत्ति
आज मैं "मन की बात" सुन रहा था तो मोदीजी की आवाज़ में एक थकन महसूस हुई, बुढ़ापे की थकन। सच है, बुढ़ापा किसी को नहीं छोड़ता, प्रधानमंत्रियों को भी नहीं। और बुढ़ापे के पीछे क़दम दो क़दम के फ़ासले पर मौत आ रही होती है। इसीलिए ज़रूरी है कि दुनिया की दौड़ भाग को हम सही समय पर बंद कर पाएँ, सेवानिवृत्त हो पाएँ, ताकि आंतरिक मौन और विश्राम का आनंद ले पाएँ। जिसने भी ये मौन और विश्राम नहीं चखा वो हमेशा ही प्यासा रहेगा, तड़पेगा, बेचैन रहेगा, चाहे वो प्रधानमंत्री बन जाए या दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति। और जिसने ये चख लिया, उसे और कुछ पाने की इच्छा शेष नहीं रहती।